ग्वालियर। जीवन में आत्मकल्याण करना है तो चार बातें जीवन में उतारना जरूरी है। पहली बात है श्रद्घा, लेकिन श्रद्घा अंधी नहीं होनी चाहिए। लेकिन अटूट होनी चाहिए। दूसरी बात जीवन में संतोष का होना जरूरी है। लेकिन संतोष का आश्रय धन, संपदा से नहीं है। कोई भी काम हो मन में संतुष्टि का भाव होना चाहिए। जीवन में जो मिला उसे स्वीकार करो। यह बात मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने चेतकपुरी स्थित दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि तीसरी बात संयम है, भावनाओं पर नियंत्रण रखना और प्रवृत्तियों पर अंकुश रखना। इसे ही संयम कहा जाता है। असंतुलित जीवन में कोई सुख नहीं है भावों का अतिवेग असंयम का परिचय देता है। भावों पर नियंत्रण कर संयमित जीवन जीना चाहिए। चौथी बात सोच को सकारात्मक बनाकर चलें। इससे संबंधों में मधुरता आती है। शांति मिलती है, जीवन को ऊंचाइयों तक हम इन चारों उपायों से ले जा सकते हैं। धर्म को व्यापक रूप में समझे सिर्फ पूजा, आराधना तक सीमित नहीं समझे। धर्म को व्यवहारिक रूप से आत्मसात करें इससे जीवन का कल्याण हो जाएगा।